Monday, August 2, 2010
लोकतंत्र का गद्दार कौन ?
आज एक चैनल पर आ रहे कार्यक्रम 'लोकतंत्र के गद्दार ' को देखने के बाद मेरे मन में एक सवाल बार बार आया की आखिर लोकतंत्र का गद्दार है कौन ? कुछ दिनों पूर्व रायपुर में हुए एक सेमिनार में मैंने स्वामी अगनिवेश के साथ कुछ और बुद्धिजिवियो को सुना था तब भी मेरे मन में ऐसे ही सवाल आये थे ,उनके श्रीमुख से जो भी कुछ निकला मुझे कुछ हज़म नहीं हुआ और शायद ही किसी समझदार युवा को हज़म हुआ होगा . आज हर व्यक्ति आये दिन हमारे लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा करने की कोशीश करते नज़र आता है और मुझे तो लगता है की ये बुध्धिजीवी कहलाने और बनने के लिए जैसा पहला कदम हो . और तो और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली मीडिया भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ता , आज मीडिया किस जगह पहुँच गयी है ये तो शायद ही किसी से छुपी है , घर घर की कहानी को लोगो के सामने पेश करने में मीडिया को कभी शर्म नहीं आती उल्टा अपने पीठ को खुद ही थपथपाने में लगी रहती है .पर मुझे एक बात समझ नहीं आती की आखिर क्या सारी बुराइया सिर्फ लोकतंत्र और राजनीती में ही है बाकी सबका दामन पाक साफ़ है .आज इस देश के भ्रष्ट सिस्टम में शायद ही ऐसी कोई व्यवस्था बची है जो भ्रष्ट नहीं हुआ है ,पर मीडिया को और बुद्धिजीविओ को ये सब नज़र नहीं आता है. उस सेमिनार में एक बात आई जिसमे कहा गया की आज के लोकतंत्र का मतलब है की कुछ चुने हुए प्रतिनिधिओ द्वारा चलायी जा रही सरकार जो सिर्फ उन प्रतिनिधिओ के लिए ही काम करती हो , एक आंकड़ा भी पेश किया गया जिसमे उल्लेख किया गया की देश के सर्वोच्च संसथान लोकसभा और राज्यसभा में परिवारवाद का और पैसो का ही बोलबाला है . पर ये बात किसी ने नहीं कही की देश के आज़ाद होने 60 साल के बाद भी देश का मतदान प्रतिशत 60% से आगे नहीं बढ़ पाया और किसी ने कोशिश भी नहीं की इसे बढ़ाने की . ये भी हो सकता है की मंच पर लोकतंत्र के बारे में जो आग उगलते है वो भी अपने आप को मतदान करने से वंचित रखते है . मतदान वाले दिन शायद ही कोई मीडिया कर्मी अपनी ऊँगली में साही दिखा पाता है और दूसरो को प्रेरित कर पाता है मतदान के लिए .
अगर ध्यान से देखा जाए तो समझ आता है की एक सोची समझी साज़िश के तहत एक वृहद कोशिश चलाई जा रही है इस देश में राजनीती और लोकतंत्र को बदनाम करने की ताकि आम आदमी इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझे. आज देश की परिस्थिति ये है की नब्बे प्रतिशत लोग राजनीति को गन्दा कहने से भी परहेज़ नहीं करते और उच्च वर्ग और कॉर्पोरेट जगत तो मतदान को भी समय की बर्बादी समझते है ,ऐसे में लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह जाता है. आज बच्चा जब स्कूल जाता है तो उसके माँ बाप की एक ही ख्वाहिश होती है की वो बड़ा होके डॉक्टर ,इंजिनियर या कोई प्रोफेसनल कोर्स करके विदेश में सेटेल हो जाये और डालर में कमाई करे , क्या कोई माँ बाप सोचता है की उसके संतान देश के सिस्टम के लिए कुछ करे शायद इसके जवाब में हा कभी सुनने को नहीं मिलेगा. क्या कोई बच्चा एम.बी.ऐ की पढाई करते समय देश में मंत्री या जनप्रतिनिधि बनकर काम करने की सोचता होगा शायद इस प्रश्न के उत्तर में भी न ही मिलेगा . तो अब लोकतंत्र का क्या दोष है जब काबिल आदमी इस ओर कदम बढ़ाएंगे ही नहीं तो सिस्टम में खराबी आएगी ही . सारे लोग एक बात जरूर कहते नज़र आते है की राजनीती में तो कोई भी आ सकता है इसके लिए कोई डिग्री या डिप्लोमा की जरूरत नहीं पड़ती .पर क्या डिग्री पाने के बाद कोई राजनीती में आने की चाहत रखता है ये सवाल कोई नहीं पूछता . क्या गन्दगी सिर्फ राजनीती में ही है ये सवाल मैं उन सभी बुद्धिजीविओ से पूछना चाहता हु क्या कॉर्पोरेट जगत ,मीडिया जगत ,शिक्षा जगत या ऐसी सारी जगह पाक साफ़ है इनपे कोई ऊँगली क्यों नहीं उठाता. राखी सावंत के ठुमको को बेचने वाली मीडिया भी राजनीती के पीछे ऐसे हाथ धोके पड़ी रहती है जैसे मानो राखी सावंत से ठुमके लगवाने के लिए भी लोकतंत्र और राजनीती ने ही मीडिया को प्रेरित किया हो . टी.आर.पि के अंधी दौर में भागते भागते आज मीडिया जो परोस रही है शायद इसकी परिकल्पना भी किसी ने नहीं किया होगा . कुछ सालो पहले ऐसी कई प्रतिबंधित किताबे छपती थी जो सभ्य समाज के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती थी आज वैसी कहानिया सारे चैनलों के लिए प्राइम टाइम खबरे है .क्यों इन बुध्धिजिवियो को ये सब नहीं दीखता .
शायद इन लोगो ने कसम खा ली है की देश के लोकतंत्र और राजनीती को इतना बदनाम कर देंगे की 110 करोड़ की जनसँख्या वाले इस देश में राजनीती में आने के लिए लोगो का टोटा लग जाए और परिवारवाद का वृक्ष पूरी तरह से इस देश को अपने आगोश में समां ले . मुझे तो इन लोगो के समझदारी पे बड़ा तरस आता है और उनके देशप्रेम के ढोंग से नफरत होती है . जिस लोकतंत्र के बल पे वे बुध्धिजीवी कहलाते है उसी को दिलखोल कर गाली देते है . तो ऐसे में इन बुध्धिजिवियो को देशद्रोही या गद्दार क्यों न कहा जाये . आज वो वक़्त आ गया है जब युवावर्ग को कमान अपने हाथ ले लेना चाहिए और इन देशद्रोहियो को बेनकाब कर देना चाहिए और इनके विचारो को सिरे से खारिज कर इनसे बुद्धिजिवि कहलाने का हक छीन लेना चाहिए . मीडिया की भी क्या कहे वो इस युवा वर्ग को बिग बॉस संस्कृति में इस तरह फ़साना चाहती है की उससे ऊपर उठके युवा कुछ देख ही न पाए . एक बड़े पत्रकार ने उसी मंच से एक बड़ी अनोखी बात कही की तकनीक के साथ संस्कृति भी बदलती है . पर क्या किसी देश की तकनिकी विकास ने उसे मजबूर किया की वो अपने संस्कृति को बदल दे इसका उत्तर उनके पास शायद ही होगा . क्या किसी तकनीक ने मजबूर किया की टीवी पर इमोसनल अत्याचार देखे या स्वयंवर का तमाशा देखे . इस मीडिया को तो किसी जवान के बहते खून में भी सिर्फ टी.आर.पि दिखती है, तभी तो उसके बहते खून के आगे एक्सक्लूसिव का टैग लगा देते है और उसमे उन्हें कोई शर्म भी नहीं आती . मीडिया कैसे कौडियो के भाव बिकने लगी है इसके तो न जाने कितने उदाहरण है, पर मैं जिस प्रदेश में रहता हु वहा भी मीडिया किसी धंधे से कम नहीं है. इस प्रदेश के चार बड़े मीडिया हॉउस क्रमश केमिकल , स्टील , पावर , और कोयले के धंधे में व्यस्त है और अपने पावर का इस्तमाल सिर्फ अपने लिए करते है . कमोवेश पुरे देश का ही हाल ऐसा है सारे बड़े चैनल किसी न किसी उद्योग को बढ़ावा देने में लगी रहती है . तो फिर क्यों लोकतंत्र को निशाना बनाना अगर इसमें बुराई है तो अच्छाई भी है . अब देशवासियो पे ये छोड़ दिया जाना चाहिए की वो तय करे की आखिर लोकतंत्र का असली गद्दार है कौन ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment