सुनने और पढ़ने में शायद ये काफी अजीब लगे पर ये सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार 5 सालो में 50 दिन जनता के बीच बिताती है और उसे सुराज के नाम से प्रख्यात करने में कोई चूक नहीं करती है. आखिर ये कैसा सुराज है जहा नौकर शाह खाना पूर्ति करने के नाम से मात्र 10 दिन अपना पसीना बहाकर वाह-वाही लूटने को आमादा दिखती है. छत्तीसगढ़ ऐसे भी नौकर शाहों का ही प्रदेश बनकर रह गया है , कहने को तो यहाँ भाजपा कि सरकार है पर हकीक़त में इस प्रदेश को नौकर शाह ही चला रहे है और सरकार के सारे मंत्री इनके सामने अपनी चलाने में नाकाम साबित हो रहे है. डॉ रमन सिंह ने अपनी पहली पारी में जितनी लोकप्रियता हासिल कि थी शायद दूसरी पारी में वो नहीं कर पा रहे है और इसका प्रमुख कारण उनका कार्यकर्ताओ और जनता से सीधा संवाद न होना . उनके आस-पास कार्यकर्ताओ का तो टोटा सा लग गया है या जो है उन्हें भी नौकर शाहों ने मुह बंद रखने कि हिदायत दे रखी है.
भारतीय शिक्षा प्रणाली को गौर से अगर देखा जाए तो ये नौकरशाह कागज़ के शेर ही नज़र आते है जो अपनी आधी जिंदगी किताबी ज्ञान बटोरने में लगाते है और जिनका समाज से लगाव बहुत कम ही रहता है. जब ये तथाकथित कागज़ के शेर अपने कुर्सी को सम्हाल लेते है तो ये अपने आधीन काम करने वालो पर 100 फीसदी निर्भर हो जाते है और सिर्फ हस्ताक्षर करने तक अपने आप को सीमित कर लेते है. यही कारण है कि ये नौकरशाह 10 दिन में सुराज लाने कि कल्पना करते है और अपने मुखिया के आँख में धूल झोंककर आरामदायक कुर्सिओ पर जमे रहने कि कोशिश करते है. आज पूरे प्रदेश में ग्राम सुराज कि जमकर खिचाई हो रही है ,कही अधिकारिओ को बंद कर दिया जा रहा है, तो कही सुराज का बहिष्कार किया जा रहा है इससे तो ये ही प्रतीत हो रहा है कि अब प्रदेश वासिओ को 10 दिन के सुराज के नाम पर अधिकारी वर्ग मूर्ख नहीं बना सकते है.
डॉ रमन सिंह को भी अब समझना चाहिए कि इस प्रदेश कि जनता ने भाजपा पर भरोसा किया है ना कि इन नौकरशाहों पर और उन्हें बागडौर अपने हाथ में ले लेना चाहिए. ये वो ही देश है जहा मायावती जैसी महिला मुख्यमंत्री ने एक दिन में ही 144 आईएएस व आईपीएस जैसे अफसरों पर गाज गिराके समझा दिया था कि इस देश में लोकतंत्र है और नौकरशाह लोकतंत्र के अधीन होते है न कि उससे ऊपर. ऐसे भी ये नौकरशाह सुख के पंछी होते है जब जिसकी सरकार तब उनके होते है, शायद डॉ साहब को ये बाद में समझ आएगा जब वे सरकार में नहीं रहेंगे. कोई भी राजनैतिक पार्टी को नीति निर्धारण करते समय अपने कार्यकर्ताओ को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए क्योंकि ये वो ही कार्यकर्ता होते है जो अगले चुनाव में जनता के बीच जाने वाली होती है या जिनका सीधा संवाद जनता से रहती है. पर इस प्रदेश में सारे निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ अधिकारिओ के पास है, चाहे वो जैसे भी उनको तोड़े-मरोड़े कार्यकर्ता सिर्फ आहे ही भर सकता है.
रमन सिंह ने जब दोबारा मुख्यमंत्री कि कुर्सी सम्हाली थी तो परिदृश्यो को देखकर ऐसा लगता था कि शायद ये पश्चिम बंगाल में वामदलों द्वारा बनाये गए 35 साल के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे, पर अब ढाई साल बाद ऐसे सोचना भी मूर्खता सी ही लग रही है. रोज सुबह मैं जब अखबार लेकर बैठता हूँ,तो मेरे चेहरे पर सहसा ही हंसी फूट जाती है सुराज के जनसंपर्क अभियान को देखकर, हर अखबार के मुख्य पृष्ट पर डॉ. साहब के तस्वीर वाला ग्राम सुराज से सम्बंधित बड़ा सा विज्ञापन लगे रहता है और ठीक उसके ऊपर समाचार रहती है कि फला जगह ग्राम सुराज दल को बंधक बनाया गया . तो ये सरकारी पैसो को स्वाह कर विज्ञापन क्यों छपवाया जा रहा है ये समझ से परे है जब अभियान ही नहीं चल पा रहा है तो इतना खर्च क्यों ? मजे कि बात तो ये भी है इस ग्राम सुराज अभियान में कुछ दिनों पूर्व एक विधायक को भी ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था, ये साफ़ साफ़ सन्देश है रमन सरकार के लिए कि नीतिओ में बदलाव जरूरी है अधिकारिओ पर कसाव जरूरी है, सरकार कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर चलाया जाता है नाकि निरंकुश अधिकारिओ के भरोसे. चुनावो को भले ही ढाई साल बचे है पर कार्यकर्ताओ कि पूछ परख रहेगी तभी भाजपा को विजयश्री प्राप्त हो पायेगी और ये अधिकारी वर्ग तो आंचार सहिंता के बाद से ही पराये हो जायेंगे.
10 दिन के सुराज से कोई बदलाव नहीं आना ग्राम स्तर पर ठोस कार्यक्रमो कि जरूरत है जो 24 घंटे और 365 दिन के लिए हो, ये छोटे मोटे गानों से कुछ नहीं होने वाला है साहब यहाँ तो पूरी पिक्चर कि जरूरत है, भाजपा को भी जरुरत है कि सरकार पे अपना लगाम लगा कर रखे नहीं तो 2014 का सपना एक बार फिर हाँथ से निकलता ही दिखेगा और लकीर के फकीर बनकर 2019 तक विरोध ही करते रहना पड़ेगा. प्रदेश कि ऐसी कई परियोजनाए है जो वाकई में सुराज ला रही है इनके क्रियान्वयन पे जोर देना होगा न कि अखबारों के विज्ञापन से किसी का भला हो पायेगा. ये अखबारों को भी शाबाशी देनी चाहिए जो अपने दोयम चरित्र को अपने मुख्य पृष्ठों पर छापने से भी नहीं कतराते है. एक तरफ ग्राम सुराज का लाखो का विज्ञापन और दूसरे तरफ उसकी निंदा..............।
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