ख़ामोशी कि चादर ओढ़ क्यों बैठा है मुरख कि तरह ,
क्यों नहीं बाजुओ में तेरे दम बादलो कि तरह ,
क्या सोच के दिन गुजार रहा है इस दुनिया में ,
आज कोई गया कल तू भी चला जायेगा दुसरो कि तरह ,
कुछ कर कुछ गढ़ जो अमिट बन जाए इतिहास कि तरह ,
इंसान बनकर आया है न गवां जीवन पशुओ कि तरह .
जीत का जज्बा उमंग उत्साह पैदा करने वाला बहुत सुन्दर
ReplyDeleteइंसान बनकर आया है न गवां जीवन पशुओ कि तरह