Wednesday, November 16, 2011

जीवन

ख़ामोशी कि चादर ओढ़ क्यों बैठा है मुरख कि तरह ,
क्यों नहीं बाजुओ में तेरे दम बादलो कि तरह ,
क्या सोच के दिन गुजार रहा है इस दुनिया में ,
आज कोई गया कल तू भी चला जायेगा दुसरो कि तरह ,
कुछ कर कुछ गढ़ जो अमिट बन जाए इतिहास कि तरह ,
इंसान बनकर आया है न गवां जीवन पशुओ कि तरह .

1 comment:

  1. जीत का जज्बा उमंग उत्साह पैदा करने वाला बहुत सुन्दर
    इंसान बनकर आया है न गवां जीवन पशुओ कि तरह

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