आज जब हम अपने नए नवेले लोकसभा की बात कर रहे होते है तब बड़े ही हर्ष से ये बोलते है की देश की बागडौर नए युवा हाथो में जाने लगा है। पर क्या ये मानने को तैयार है की ये सारे जनप्रतिनिधि (नेता गन ) कही न कही राजनितिक परिवारों से ही आए है और इसी वजह से उनकी राजनैतिक सोच में उनके पूर्वजो की ही काया है ,,,
तब नए विचारो को कहा जगह मिला ???? ये सवाल हर वक्त मेरे जहाँ में आता है और मेरे मन को कचोट कर चला जाता है , पर मैं तो सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का आम आदमी हु और अपनी दुर्दशा पे खुश हूँ और मुझे देश में चल रहे गन्दी राजनीती में शामिल नही होना है। यह परिस्थिति लगभग हर नौज़बान के सामने है और राजनीति में उन ही युवाओ की रूचि है जिन्हें विरासत में राजनीति हासिल हो या जिनके पास कोई काम नही है ।
आज जब इस ५४३ जनप्रतिनिधिओ की लोकसभा बैठती है तो उनमे से लगभग ६०% प्रतिशत लोग ऐसे होते है जो या तो राजपरिवारों से संबंध रखते है या फ़िर किन्ही बड़े राजनैतिक परिवारो के लाडले है। कही न कही हमारे देश में ११० करोड़ की जनसँख्या में नैचुरल लीडरशिप की घोर कमी दिखाई देने लगी है जो युवराजो को जन्म देने के लिए काफ़ी है । आज भारत का लगभग हर इंसान अमरीकी सभ्यता से कही न कही प्रवाहित है पर वह के लोकतंत्र और हमारे देश के लोकतंत्र की बारिकियो को नज़रंदाज़ करना ज्यादा पसंद करता है। आज ऐसे लोगो की कोई कमी नही जो राजनीती को गाली देने में कोई कमी नही करते पर उनसे जब राजनीती में आने को कहा जाता तो वो बड़े प्यार से बोल जाते है की ये मेरे बस की बात नही या फ़िर उद्योग जगत। तो फ़िर सवाल आता है नैचुरल लीडरशिप उभरेगी कहा से ????
आज यही वजह है जो युवराजो को मौके पर्दान करते आ रही है और देश उसी ढर्रे पे चलने को मजबूर है जो आज से ६० साल पहले थी ।
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