Sunday, February 21, 2010

सुप्रीम कोर्ट बनाम लोकतंत्र

एक तरफ तो साल दर साल हम गणतंत्र दिवस मनाते हुए बड़े गर्व से कहते हैं कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिक है, और दूसरी ओर देश के लोकतांत्रिक ढांचे को किसी न किसी तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश ढके-छुपे तौर पर जारी रहती है। हमारे देश में ”लोगों द्वारा लोगों के लिए सरकार चुनने की प्रक्रिया है” जिसे हम लोकतंत्र का नाम देते हैं। पर इन 61 सालों में इसके पर्याय को कई बार तोड़ा और मरोड़ा गया है। हालांकि परिस्थिति को देखा जाए तो लोकतंत्र का मतलब है कि देश के समस्त व्यस्क नागरिकों द्वारा चुना गया कुछ राजाओं, युवराजों और सीमित परिवारों की सरकार। जो दिल्ली की गद्दी पर बैठकर अपनी इच्छाशक्ति के अनुरूप देश को चलाए और इसका दोहन करें। इस देश की परिपाटी के अनुसार ही सबकुछ चल रहा है भले ही राजे रजवाड़ों का अंत हो चुका है, पर कायदे वहीं चल रहे हैं। अब बाप-दादाओं की राजनीतिक पार्टियों को उनके पोते-पोतियां अपनी जागीर समझ कर चलाते हैं।
खैर ये सब तो हुई राजनीतिक बातें। अब तो सुप्रीम कोर्ट भी हमारे लोकतंत्र की ओर आंखें टेड़ी कर देखने लगी हैं। आज सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के ऊपर चल रहे एक मामले की सुनवाई करते हुए तुगलकी अंदाज में फरमान सुना दिया कि अब राय सरकारों के अनुमति के बगैर भी सीबीआई जांच की जा सकेगी। ये तो किसी से छिपी हुई नहीं है कि सीबीआई किस सरकार के इशारे पर काम करती है और अब तक न जाने कितने ही बार सीबीआई की कार्यशैली पर उंगलियां उठ चुकी हैं। ये वही सीबीआई है ,जो 1984 से चले आ रहे बोफोर्स तोप सौदे पर अपनी दलीलें बदल चुकी हैं। जब-जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रहीं, सीबीआई जांच की दिशाएं बदलती रही हैं। सीबीआई की और तारीफ क्या करें, छोटे से आरूषि हत्याकांड का पर्दाफाश तो कर नहीं पाती है। तो ऐसे में दूसरे बड़े मामलों की बात करना बेमानी ही लगती है। पर ये बातें जरूर समझनी होगी कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला किस बूते लिया। भारत वर्ष के कुल 28 प्रदेशों में लोकतांत्रिक ढंग से चुनीं हुईं सरकारें हैं, तो क्या ये मान लेना चाहिए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को अब इन सरकारों पर भरोसा नहीं रह गया है।
इस बात पर भी ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है कि क्या सुप्रीम कोर्ट 110 करोड़ की जनसंख्या वाले लोकतंत्र से बढ़कर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश कब दिया, यह भी बहुत मायने रखती हैं, पश्चिम बंगाल सरकार और केन्द्र सरकार के बीच में मीदनापुर में हुए गोलीबारी पर बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी किया। मीदनापुर में हुए इस घटना में कथित रूप से तृणमूल कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता मारे गए थे। इस घटना की सीबीआई जांच के लिए रेलमंत्री सुश्री ममता बेनर्जी पिछले कई दिनों से के न्द्र की यूपीए नीत सरकार पर दबाव बनाए हुए थीं। तो क्या ये भी समझना लाजमी हो सकता है कि उक्त मामले में केन्द्र सरकार के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट भी दबाव में थी।
सीबीआई के बारे में आगे क्या कहें यह भी समझ नहीं आता क्योकि यह भी खुलेतौर पर साबित हो चुका है कि सीबीआई केन्द्र सरकार के हाथ की कठपुतली होती है, पर सुप्रीम कोर्ट भी उस रस्ते चल पड़ेगी यह समझ से परे है। यह आदेश सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने कहा ”अदालतोें को सीबीआई जांच से संबंधित आदेश देने का अधिकार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व वाले मामलों में असाधारण और विशिष्ट हालात में कभी कभार ही रहेगी।” पर ये बात कही भी स्पष्ट नहीं होती कि दो राजनैतिक पार्टीयों में चल रहे रंजिश कब से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व रखने लगी है। मुबंई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे सामने आये जैसे बुलेट प्रुफ जैकेट की खरीदी में हुए घोटाले आदि। तब माननिय सुप्रीम कोर्ट को यह आदेश देने की क्यों नहीं सूझी? न्यायधीशों के संपत्तियों का ब्यौरा देने की बात आयी तब भी सुप्रीम कोर्ट खामोश रही और अबतक न जाने कितने ही न्यायधीशों ने अपने संपत्तियों का पूर्ण ब्यौरा पेश नही किया है। सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर भी क्यो न कोई आदेश पारित करें?
सीपीएम नीति पश्चिम बंगाल शायद उसी दिन से ही यूपीए के आकाओं के आखों में किरकिरी बन गयी थी जब पिछले लोकसभी में परमाणु मुद्दे पर तत्कालिन सरकार से वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया था। तो अब बस यही कदम बचा था कि सीबीआई का फंदा तैयार किया जाए और ऐन केन प्रकारेन से वामपंथियों के पतन का खाका तैयार किया जाए।
पर ये बात देश के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है कि लोकतंत्र की चुनौति के रूप में अब सुप्रीम कोर्ट का भी इस्तेमाल होने लगा है। आज पश्चिम बंगाल में सुप्रीम कोर्ट की नजर पड़ी है शायद कल गुजरात पर पड़े क्योंकि नरेन्द्र मोदी के नाक में भी नकेल डालने की कोशिश कांग्रेस हमेशा से ही करती आ रही है। ऐसे फैसलों से एक बाद स्पष्ट हो जाती है कि केन्द्र सरकार और राय सरकारों के बीच तालमेंल राजनैतिक कारणों से प्रभावित होते जा रही है।

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