आज देश में न जाने कितने ही लोग ऐसे है जो अपनी जेब में दो-दो मोबाईल फोन रखते हैं पर आश्चर्य की बात यह है कि अब खाने की थाली में एक साथ दो सब्जियां मुश्किल से ही देखने को मिलता है। दिन-ब-दिन ऐशो-आराम की वस्तुएं सस्ती होती जा रही है, पर मूलभूत आवश्यकताओं की वस्तुओं के मूल्य में बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है। इंसान की प्रमुख जरुरत की तीन चीजें रोटी, कपड़ा और मकान उसकी पहुंच से दूर होने लगी है।
महंगाई आज देश का सबसे वलंत मुद्दा है और शायद ही इससे कोई आज अछूता है। आर्थिक मंदी का भूत जैसे ही देश से थोड़ा दूर जाने लगा महंगाई ने देशवासियों को जकड़ लिया। जो कुप्रभाव आर्थिक मंदी अधूरी छोड़ गई उसे पूरा करने में महंगाई कोई कसर छोड़ नहीं रही है। महंगाई दर हर रोज नित नये कीर्तिमान स्थापित करते जा रही है। जिस पर देश के वित्तमंत्री कहते है ‘देश का जीडीपी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेगा महंगाई दर भी आगे बढ़ेगी’ पर आम आदमी को जीडीपी से क्या लेना-देना, उसे तो बस अपने दो वक्त के खाने की चिंता है। इस महंगाई की आपा-धापी में कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार के बयान आग में घी का काम कर रही है। अब वो दिन दूर नहीं शायद जब इस महंगाई के चलते लोग खुदखुशी जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाये। आज रसोई से लेकर नित्य उपयोग में आने वाली हर वस्तुओं के दामों में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है। टूथ पेस्ट से लेकर साबुन तक और सिर पे लगाने वाले तेल की कीमत भी आसमान छूने लगी है। रसोई का तो क्या कहना। आटे-दाल के भाव तो आसमान पर ही है और तो और सब्जियां खरीदना भी अब आम मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल साबित होने लगी है।
इस वक्त देश की कमान यूपीए नीत सरकार के पास है जिसे एक महिला यानी मैडम सोनिया गांधी संचालित करती है। भारत की परंपरा को देखें तो महिलाओं को लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है, पर यह कैसी इतालवी लक्ष्मी है जिसने आम आदमी को रसोई में जाना दूभर कर दिया है। उनके ‘सुगर-किंग’ खाद्य मंत्री शरद पवार का क्या कहना। उनके एक-एक बयानों ने आम आदमी की रसोई में ऐसा कहर बरपाया कि उन्हें अब लोग टीवी पर देखने से भी डरने लगे हैं। शक्कर पर उनके बयान ने शक्कर को 32 रूपए किलो से सीधे 50 रूपए तक पहुंचा दिया और इस छलांग से उन्हें और उनके पार्टी के कुछ नेताओं को रातों-रात करोड़ों रूपए का फायदा हो गया, क्योंकि महाराष्ट्र में कुल 17 चीनी मिले ऐसी हैं जो या तो शरद पवार के मालिकाना हक की है या फिर उनके पार्टी के किसी न किसी नेता की है। उसके बाद मौका मिला तो उन्होंने दूध को भी नहीं बख्शा। दूध की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि देखी गई। पिछले एक सप्ताह में दूध की कीमतों में 2 से लेकर 4 रूपए प्रति लीटर की बढोत्तरी हुई। दाल और चावल को तो उन्होंने पहले से ही आम आदमी की पहुंच से दूर रखा है।
कीमतों में बढ़ोत्तरी का आलम यह है कि आज 100 रूपए का नोट बाजार में सिर्फ 1 किलो दाल ही दिला सकती है इससे यादा कुछ नहीं। ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर देश में ऐसा क्या हो गया कि पिछले एक साल में कीमतें आसमान पर पहुंच गई। कीमतों में बढ़ोत्तरी का प्रतिशत अगर पिछले साल के मूल्यों की तुलना में देखा जाए तो यह पता चलता है कि लगभग सभी खाद्य वस्तुओं में 50 से लेकर 100 फीसदी की मूल्य वृध्दि हुई है। आखिर किन कारणों से ऐसी परिस्थति निर्मित हुई है। इसका जवाब दिल्ली में बैठे निजामों को देना ही पड़ेगा। क्या एक साल में कृषि प्रधान भारत का कृषि उत्पाद आधा हो गया? क्या देश में गन्ने की खेती एक ही साल में 50 फीसदी घट गई? क्या देश का पशुधन भी घट गया? ऐसे न जाने कितने ही सवाल इन पंक्तियों को लिखते समय मेरे ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करती रही। आज भारत का हर नागरिक खाद्य मंत्री की ओर इन सवालों के जवाब के लिए देख रहा है, और बशर्मी की हद तो जब हो गई जब 23-2-2010 को देश की सर्वोच्च संस्था यानी लोक सभा में महंगाई पर काम रोको प्रस्ताव पर बहस चल रही थी तो शरद पवार साहब अपनी मादक और कुटिल मुस्कान से सबको हतप्रभ करते रहे पर उनके पास किसी सवाल का कोई जवाब नहीं था। उनके साथ सोनिया जी भी बेबस बैठी नजर आ रही थी।
क्या देश में चुने हुए सरकार को 5 साल तक अपनी मनमानी करनी की खुली छूट है? अगर हां तो यह कैसा लोकतंत्र है? जहां देश में चुनावी वादों का मौसम जाते ही देश का आम आदमी अपनी जेब पर बढ़ती बोझ तले दबने लगता है। इस बार चुनावों के दौरान कांग्रेस ने एक नारा दिया था, ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ ‘ सच पूछों तो यह नारा सच प्रतीत होता नजर आ रहा है बस थोड़े मायने बदल गए हैं। नये रूप में इस नारा को देखें तो ऐसा लगता है कि ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के जेब को करता है साफ’।
देश की जनसंख्या का लगभग 5 प्रतिशत ही हवाई सफर करने में सक्षम है पर इंडियन एयरलाइंस को मंदी से उबारने की चिंता सरकार को इतनी है कि माननीय नागरिक उद्ययन मंत्री श्री प्रफुल्ल पटेल ने इस मंदी से उबरने के लिए विशेष पैकेज की मांग कर डाली पर क्यों न इस विशेष पैकेज के बजाय किराये में बढ़ोत्तरी की जाये। इस बाबत् उन्होंने कुछ भी नहीं कहा। इस मद में जाने वाली धन को अगर खाद्य सामग्रियों की कीमत को कम करने में लगाया जाये तो शायद वो 5 प्रतिशत की जगह देश के संपूर्ण जनसंख्या के लिए फायदेमंद होगा। इसी तरह पिछले साल आटो मैन्यूफैक्चर्स को मंदी से उबारने के लिए विशेष पैकेज आबंटित किया गया जो कि कई हजार करोड़ रूपए की थी पर सरकार को यह नहीं मालूम था कि देश में सिर्फ 22 प्रतिशत लोग ही अपना कार खरीदने का सपना पूरा कर पाते हैं। तो फिर यह फैसला किन दबावों के चलते सरकार ने लिया था इस पर भी विचार होना चाहिए।
आज क्यों न देश का हर पार्टी महंगाई के इस मुद्दे पर एक राय बनाने और आम आदमी को इस महंगाई की आग से बचाने के लिए कोई प्रयास करें। क्योंकि आज नहीं तो कल इन पार्टियों को वोटरों के पास दोबारा जाना तो ही पड़ेगा ही। देशवासियों ने भले ही इस बार प्रमुख विपक्षीय पार्टी भाजपा को नकार दिया हो पर ये वक्त भाजपा के लिए परीक्षा की घड़ी से कम नहीं है। जब उसके पास मौका है देश के हर नागरिकों के हक के लिए लड़ने का। मंदिर मस्जिद विवाद तो चलता रहेगा पर देश के हर घर में चूल्हे जलते रहे यह सुनिश्चित करना देश के हर पार्टी के लिए सर्वोपरि है।
बहुत मंहगाई बढ़ गई है...निश्चित ही चिंता का विषय है.
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