Wednesday, July 7, 2010

कब तक चुप रहेंगे............

कुछ ही सालो पहले मैं अपने जेब में एक सौ का नोट लेकर बड़े मजे से दो दिन गुजार लेता था कुछ पेट्रोल पर कुछ खाने पर और कुछ चाय वैगरह पर खर्च कर लिया करता था । अब जब मैं सौ का नोट देखता हु तो ऐसा लगता है की मानो इसकी कीमत कुछ ज्यादा ही कम हो गयी है क्योंकि अब इसमें पेट्रोल और चाय ही हो पाता है खाने की बात को टालनी पड़ जाती है वो भी सिर्फ एक दिन में ही सौ रूपये की कहानी ख़त्म हो जाती है .जिसे माध्यम वर्ग कहा जाता है उस वर्ग में आने वाले कमोबेश सभी की हालत ही ऐसी है ॥ आखिर ऐसा क्या हुआ इन कुछ सालो में जो हम १४ रूपये किलो का चावल ३४ में खरीदने लगे ,३२ रूपये की दाल ८४ रूपये में खरीदने लगे और ३० रूपये लीटर का पेट्रोल ५३ तक पहुच गया .शायद कुछ दिनों में सुखा भी नहीं पड़ा देश में ,खरी में युद्ध भी नहीं हुआ और देश में कोई आपदा भी नहीं आई तो ऐसा क्या हुआ इए तो सिर्फ दिल्ली में बैठे निजामो को ही पता होगा .या फिर रिमोट से सरकार चला रही आदरनीय सोनिया जी को ही मालूम होगा .

देश की राजनीति की हालत ये है की अब सब सेटिंग पर भरोसा करने लगे है ।चाहे कांग्रेस हो या भाजपा या कोई और पार्टी वो सिर्फ अपने फायदे पर काम करना पसंद करती है और अपने मकसद को हासिल करने में लगी रहती है .कभी ढोंग के लिए धरने प्रदर्शन जरूर कर लेती है पर जन आन्दोलन से पीछे ही रहना पसंद करती है .ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि इस देश में जंहा कहने को तो गणतंत्र है पर देश को चलाते मुठ्ठीभर लोग ही है .कुछ दिनों पूर्व सांसदों ने अपनी तनख्वा ५ गुना बढ़ाने की मांग की और सभी पार्टीओ के नेताओ ने तुरंत ही बिना मतभेद के इस पर सहमती जता दी .क्योंकि ये उनके खुद के जेब का सवाल था इसलिए .इस बात का अगर कोई दूसरा मतलब निकला जाए तो ये साबित होता है की पिछले कुछ सालो में महंगाई ५ गुनी बढ़ी है जिस पर पूरा संसद भी एकमत है तभी देश के बुध्धिमान सांसदों ने अपनी तनख्वा ५ गुनी बढ़वाई. पर जब आम आदमी पर पड़ने वाले इस बोझ की बात होती है तो इन सारे लोगो को सुने देना बंद हो जाता है या उन्हें इस विषय पर बोलते समय भगवान की बड़ी याद आने लगती है और अपनी जिम्मेदारी वो भगवान पे ही डाल देते है . कुछ दिन पूर्व देश के जिम्मेदार वित्त मंत्री का ऐसा ही एक बयान आया जिसमे उन्होंने कहा की अगर इस साल भगवान की कृपा से बारिश अच्छी हुई तो हो सकता है की महंगाई कुछ कम हो ,और देश के महंगाई मंत्री यानी माननीय शरद पवार जी का तो क्या कहना उनके शब्दों से देश के मध्यम वर्ग पे तो कहर बरप जाती है और शक्कर से लेके आटा तक पहुँच के बाहर होने लगती है . जब वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह वित्तमंत्री हुआ करते थे तब पूरा देश उनकी तारीफ़ करते नहीं थकती थी और उनके विकास भरे कदमो की सराहना लोग पुरे दिल से करते थे .पर अब जब वे प्रधानमंत्री है तो उन्हें क्या हो गया कोई समझ नहीं पा रहा है क्योंकि महंगाई पर प्रख्यात अर्थशास्त्री होने के वावजूद उनका गणित गरबराने लगी है.

दूसरी ओर देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा भी कोई सार्थक प्रयास नहीं कर पा रही है सिर्फ पंडालो तक ही उसका विरोध प्रदर्शन सिमित होकर रह गयी है। भाजपा अगर सचमुच देशवासियो के प्रति उत्तरदायी है और जन समर्थन से राजनीति को आगे चलाना चाहती है तो उसे मंदिर मस्जिद से ऊपर उठके लोगो की दैनिक जिंदगी के बारे में सोचना ही होगा .भावनाओ का जिंदगी पर असर तो होता है पर खालिस भावनाओ से जिंदगी की गाड़ी चल नहीं सकती ,उसे तो दाल रोटी और नित्य उपयोगी वस्तुयों की जरुरत होती है . आखिर क्यों अब तक भाजपा महंगाई के खिलाफ जन आन्दोलन को जन्म नहीं दे पा रही है, क्यों इनके धरना प्रदर्शन सिर्फ पंडालो तक सिमट के रह जा रही है क्या देश के प्रमुख विपक्षी पार्टी होने का दायित्व भाजपा सही मायनो में निभा पा रही है शायद नहीं .क्योंकि इस पार्टी में भी सुविधावादियो की एक लम्बी फौज तैयार हो गयी जो कभी जनता के बीच उनके दुःख सुख का हाल पूछने जाती ही नहीं है ,सिर्फ अपने राज्यसभा की सीट पक्की करने में लगी रहती है .

देश की इस राजनैतिक पतन के काल में सिर्फ एक आदमी ही काम आ सकता है और वो है देश का आम आदमी जिसे कोई राजनैतिक लाभ या हानि की चिंता नहीं होती .आज जरुरत आन पड़ी है हम आप जैसे करोडो इंसानों को देश में एकजुट होकर एक ऐसे जनांदोलन को खड़ा करने की जो इस महंगाई से हमे निजात दिला पाए .आज सूचनाक्रांति के इस युग में कोई जरूरत नहीं है की सिर्फ झंडे और डंडे से ही जन आन्दोलन की शुरुवात हो जिसे जैसे काम करना है करे पर महंगाई का विरोध जरूर करे. नेताओ के भरोसे बैठना छोड़ना होगा खुद अपनी कमान संभालनी होगी .कही न कही हर सकारात्मक पहल का महत्व होता ही है आज अगर देश की ११० करोड़ जनता एक साथ इस महंगाई के खिलाफ आवाज उठाएगी तो दिल्ली में बैठे निजामो की भी रातो कि नींद गाएब हो जाएगी. विरोध करने का तरीका कैसा भी हो पर महंगाई को देश में घर बसने नहीं देंगे ये हमे ठान लेना होगा , उदाहरण के तौर पर आज अगर हम घर में बैठकर एक ईमेल की श्रृखला भी बना दे जो महंगाई के विरोध से सम्बंधित हो और उसे अपने सारे दोस्तों के भेजने लगे और वो सारे दोस्त भी इस काम को अंजाम देने लगे तो न जाने एक छोटे से ईमेल का प्रभाव कितना बढ़ जायेगा उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते ऐसे ही न जाने कितने काम है जो देश का हर आम आदमी चुप चाप कर सकता है .पर जरूरत है उस जज्बा की जो हमे अपनी नींद से जगाये . आज इस बात पर भी ध्यान देना होगा की आखिर कब तक चुप बैठेंगे हम लोग क्या सिर्फ ५ सालो में एक बार वोट देने से ही गणतांत्रिक ढांचा मजबूत रह सकता है ,क्या एक बार हम जिसे ५ वर्षो के लिए राजा बना देंगे वो अपनी मनमानी कर सकता है .ऐसी तमाम बातो को हमे झुटलाना ही होगा नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमे रास्ते पे बैठकर अमरीका जैसे देशो की ओर भीख का कटोरा हाथ में लिए टकटकी लगाकर देखने की नौबत आन पड़ेगी . आज अगर हम देश की नहीं सोचे तो हमारी भी कोई सोचने के लिए नहीं बचेगा .

No comments:

Post a Comment