aamar moner katha.....

Wednesday, July 7, 2010

इतिहास के पन्नो तक का सफ़र

एक मिटटी के ढेर से बना हु पर अब इंसान हु,
न रोक सकते हो मुझे न ही टोक सकते हो यही सच्चाई है,
मेरी सोच में ताकत है इतनी की हवा को तूफ़ान में बदल सकता है,
सुन्दरता काफूर हो सकती हिम्मत जवाब दे सकती है,
पर इरादों की ताकत कुछ आगे तक जा सकती है,
चाहे ज़मीन हो पथरीली या हवाए बर्फीली,
हार मानना नहीं सिखा हु न ही सीखूंगा,
कुछ करने आया हु इतिहास बनके ही इस दुनिया से जाऊंगा .
Posted by gopal samanto at 9:31 PM

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gopal samanto
हे इश्वर तुम क्या मांगोगे मुझसे, चाहा नहीं जो मैंने अब तक तुमसे, रेत की बनी पगडंडियों पर चलता जा रहा हु, तेरी खोज में दिन रात एक करता जा रहा हु, तुम तो बसे हो मुझमे क्यों नहीं देख पाता हु, तेरा मेरा के बीज मन में बसाये दीवार बनाता हु, काश कोई दिन आये जब तुम आओ धरती पर, समझाओ हमे और इन दीवारों को ढहाओ, पर हम तो मिटटी के ढेर से बने है जान तो तुमने ही डाली है, क्या पाओगे तोड़ इन दीवारों को यही हमे भी देखना है .
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