Friday, May 27, 2011

आखिर अग्निवेश ही मध्यस्थ क्यों ?


आज भारत में एक नयी पौध तैयार हो रही है जिन्हें मध्यस्थ के नाम से जाना जाता है और इस वक़्त देश का सबसे बड़ा मध्यस्थ स्वामी अग्निवेश है. मध्यस्थ को अंग्रेजी में मीडीएटर और ठेठ हिंदी भाषा में दलाल कहा जाता है . इन मीडीएटरो की या मध्यस्थों की जरुरत ज्यादातर व्यापार वाणिज्य में पड़ती है और आम जिंदगी में इनके इस्तेमाल को ठीक नहीं समझा जाता है. इसका कारण इए है की अगर आम जिंदगी में बेहतर सम्बन्ध स्थापित करना हो तो सीधा संवाद ही उचित है. पर कुछ दिनों से जबभी देश में कोई सकारात्मक या नकारात्मक पहल उभर कर आयी है तब छत्तीसगढ़ में पैदा हुए एक मध्यस्थ बिन बुलाये ही अपनी सेवाए देने पहुँच जा रहे है. ये मध्यस्थ और कोई नहीं स्वामी अग्निवेश है जिनके खुद के अस्तित्व पे बहुत से सवाल लंबित है. हद तो तब हो गयी जब ये अन्ना हजारे के पाक साफ़ आन्दोलन में भी अपनी सेवाए देने पहुँच गए और अपने कु प्रभाव से इस आन्दोलन को प्रभावित करने से नहीं चूंके ,क्या उन्हें किसी ने वह बुलाया था इसका उनके पास तब भी जवाब नहीं था और शायद आज भी नहीं होगा.

छत्तीसगढ़ से तो उनको ख़ास लगाव है इसीलिए शायद उनके मातृभूमि होने का क़र्ज़ वो नक्सलियो को बढ़ावा देकर पूरा करना चाहते हो. जब भी कोई नक्सली मरता है या जेल पहुँचता है, तो स्वामीजी अपने मध्यस्थ शागिर्दों के साथ पुरे ताम झाम से दिल्ली से रायपुर पहुँच जाते है ,महंगी से महंगी हवाई यात्रा कर. ऐसे तो ये स्वामी है और भारतीय वेदों की माने तो स्वामी और साधू वो होते है जिनकी खुद की कोई इनकम नहीं होती है तो आश्चर्य इस बात से उत्पन्न होती है की फिर इनके मेहेंगे सफ़र के प्रायोजक कौन होते है और आखिर इतना संसाधन इए जुटाते कैसे है. इनसे मुखातिब होने का मौका मुझे एक बार मिला था तब मैंने यही सवाल उनसे पुछा था ,तो उन्होंने टालते हुए उत्तर दिया था की हम तो साधू है और हमे जो भी मदद के लिए बुलाता है हम तत्परता से उनकी मदद करने पहुँच जाते है. छत्तीसगढ़ की जनता इस मध्यस्थ से ये जानना चाहती है की आखिर वो जब जवानों की शहादत होती है तबे इनको क्या होता है तब ये छत्तीसगढ़ क्यों नहीं पहुँचते है शायद उन्हें तब प्रायोजक नहीं मिलते होंगे. एक तरफ तो ये अपने आप शान्ति दूत कहते है और दूसरी तरफ वो ऐसे संगठनो को समर्थन देते है जो हिंसा पर आमादा है. कुछ दिनों पूर्व छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में देश के 9 सपूतो ने मौत को गले लगाया और हिंसा की चरम तो ये थी की उनके हाथ पाँव तक काट दिए गए थे दहशत पैदा करने के लिए , तब ये मध्यस्थ कहा था इनके तरफ से कोई बयान नहीं आया इसपे आश्चर्य करना बेमानी ही होगी और उस समय शायद वो किसी बिल में तब छुपे हुए थे.
कुछ समय पूर्व जब दंतेवाडा में अग्निवेश ने शान्ति मार्च निकला था बड़ी बड़ी गाड़ियो से, तब उनका वहा घोर विरोध हुआ था , उन्होंने इसके प्रतिक्रिया स्वरुप ये कहा था की ये लोग छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सिखाये पढाये गए लोग है और उन्हें शान्ति बहाल करने से रोक रहे है. उनके इस प्रतिक्रिया को दिल्ली में कई बुद्धिजीविओ ने तत्काल सराहा और मीडिया ने भी इस खबर को खूब उछाला सरकार. विडम्बना ये है की बुध्धिजिवियो का वर्ग केवल दिल्ली से ही बयानबाजी करने में व्यस्त रहते है तो उन्हें यहाँ की हकीक़त का अंदाजा नहीं हो पाता है. एक अंग्रेजी चैनल ने तो तब ये तक कह दिया था की कुछ गुंडों ने स्वामीजी के शान्ति मार्च को बाधित किया. पर शायद उस चैनल को ये नहीं मालूम रहा होगा की बस्तर के सबसे बड़े गुंडे तो ये नक्सली है जिनके हिमायती को छुने की कोई दूसरा गुंडा हिम्मत कर ही नहीं सकता. वो तो वहा की जनता थी जिसे नक्सलियो का असली चेहरा मालूम है और उसी वजह से स्वामी अग्निवेश को दंतेवाडा में घुसने नहीं दिया गया था.

आज जब अहमदाबाद के भरी महफ़िल में स्वामी का पगरी एक असली साधू ने उछाला तब ये बुद्धिजीवी वर्ग ने कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी और वो तमाम अंग्रेजी चैनल कहा गए. इस घटना के बाद से स्वामीजी के श्रीमुख से भी कुछ नहीं निकल रहा है प्रतिक्रिया स्वरुप ,क्योंकि इस घटना के लिए वो किसको जिम्मेदार कहे ये शायद समझ नहीं आ रहा होगा उन्हें. क्योंकि ये घटना तो छत्तीसगढ़ के माटी से कई सौ किलोमीटर की दूरी में घटित हुई है. गौर से अगर परिस्थिति को देखा जाए तो ये नक्सली भी कोई गैर नहीं है बस हमारे कुछ भटके हुए भाई ही है जो इन बुध्धिजिवियो के चंगुल में फंस के अपने और दूसरो के जीवन के दुश्मन बन बैठे है. आज भी अगर इन मध्यस्थों को बीच से हटा दिया जाए तो नक्सल समस्या का निवारण बहुत आसान हो जायेगा. इसीलिए वक़्त आ गया है की हम अग्निवेश जैसे मध्यस्थों को सिरे से नकार दे . इन्हें सिर्फ ऐसे ही सबक सिखाया जा सकता है ,इनका विरोध करने से इनके तेवर और बढ़ते है और अंतरास्ट्रीय समाज भी इन्हें मदद करने को तैयार हो जाती है.

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