Sunday, December 19, 2010

दिग्विजय ये तुने क्या कर डाला !


आज कांग्रेस के अधिवेशन में कुछ हुआ हो या नहीं पर राजनीती में नैतिकता का पतन जरूर हो गया । अब तक किसी भी राजनैतिक पार्टी के किसी भी नेता ने दिवंगत विरोधियो पर लाछन नहीं लगाया, अब तक न जाने कितने बार ही देश में बोफोर्स का मामला उठा पर किसी भी राजनेता ने स्वर्गीय राजीव गाँधी का नाम उसमे नहीं घसीटा । पर आज इस परंपरा को तोड़ते हुए दिग्विजय सिंह ने स्वर्गीय प्रोमोद महाजन पर जाने कितने ही आरोप लगा डाले । पर इस कड़ी में मजबूरी ये है की अब प्रमोद महाजनजी इस दुनिया में रहे नहीं जो उनके आरोपों का जवाब दे सके शायद मैडम को खुश करने के चक्कर में और अपने आप को राजनैतिक हाशिये से उबारने के लिए कुछ ज्यादा ही दम लगा दिया, अब उन्हें इसका क्या सिला मिलता है ये तो आनेवाले दिनों में ही पता लग पायेगा. इस सम्बन्ध में कुछ लोगो की ये भी राय है की आज जो कुछ भी दिग्विजयजी ने मंच से कहा वो मैडम के ही शब्द थे कांग्रेस जब आज चारो और से घिरी हुई नज़र रही है और बचने के उपाय दिन बा दिन कम होते जा रहे है, तब मैडम ने ये पलटवार का तरीका खोज निकाला है और जिसके सिप्हेसलार दिग्विजय सिंह को बनाया गया है क्योंकि आजकल उनके पास बोलने के लिए काफी वक़्त रहता है और किसी किसी की आलोचना करते हमेशा दिख जाते है ।

जब लोकसभा में कारवाई नहीं चल पायी, ऐसे में कांग्रेस और युपिऐ बारबार एक बात कहती नज़र आ रही है की इन कुछ दिनों में देश के कई कड़ोर रूपये खराब हो गए है, पर अजीब बेशर्मी है की इन्हें कई हज़ार कड़ोर का घोटाला नहीं दिख रहा है । ऐसी क्या बात है की जेपीसी जांच से कांग्रेस पीछा छुराने में लगी है और आपने पालतू सिबिआई से जांच करवाके खानापूर्ति करना चाहती है । चलिए २ जी स्पेकट्रंम घोटाले में एक दूसरी राजनैतिक पार्टी भी शामिल है पर कलमाड़ी ने जो खेल राष्ट्रमंडल खेलों में दिखाया वो तो सिर्फ एक सच्चा कांग्रेसी ही दिखा सकता है जो भ्रस्टाचार को ही शिस्टाचार मानते है । आदर्श सोसाइटी घोटाला भी शायद कांग्रेस को नहीं याद रहा, पर उनको २००१ में प्रमोद महाजन ने क्या किया था वो जरूर याद आ रहा है । मैडम के सामने आज सबके तेवर ऊँचे थे और हो भी क्यों न आखिर उनके भाग्यो का फैसला मैडम को ही तो करना है । मैडम ने भी आज कह दिया की कोई भी कांग्रेस के तरफ ऊँगली उठाये तो उसका जवाब दो इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए दिग्गी राजा ने तुरंत कह दिया की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवको से लड़ने के लिए कांग्रेसी हाथो में डंडा उठा ले । ये कौन सी राजनैतिक परंपरा को जन्म देना चाहते है, अब तो ये लगता है की पुरे देश में गृह युद्ध छेड़ना चाहते है कांग्रेस के आला नेता । ऐसे ही इसी देश में कुछ प्रदेशो में रोज राजनैतिक हत्याए हो रही है और इसमें पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है जहा युपिऐ की सहयोगी ममता बनर्जी पहले से ही अपने कार्यकर्ताओ को मरने-मारने के लिए तैयार कर चुकी है और किसी भी कीमत पर सत्तारुड होना चाहती है ।

बिहार में राहुल बाबा का जलवा तो चल नहीं सका अब लगता है आनेवाले कुछ राज्यों में कांग्रेस डंडे के बल पे सरकार बनवाना चाहती है । पता नहीं क्यों हिन्दुओ से कांग्रेस को इतनी बैर है और सारा दोष आरएसएस के मथ्थे मढना चाहती है, देश की जनता ने जब कांग्रेस को दूसरा मौका दिया है केंद्र में सरकार चलाने का तो कांग्रेस को भी चाहिए की वो देश के जनता के बारे में सोचे । ऐसे भी भले ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार है पर राज्यों में कांग्रेस को बहुत ज्यादा ही जूझना पड़ रहा है यहाँ तक ये भी कहना गलत नहीं होगा की कुछ राज्यों में तो कांग्रेस का नामो निशाँन मिट चूका है । जो दिग्विजय सिंह पुरे देश में घूम घूम के विरोधियो को अपना शिकार बनाते रहते है उनके खुद के राज्य मध्य प्रदेश में ही कांग्रेस का सफाया हो चूका है और इस ओर उनका ध्यान जाता भी नहीं है । आज तक जात पात की रोटी कांग्रेस खूब सेकती आयी है पर बिहार के हार ने उन्हें ये सिख दे दी है की अब जात के नाम पर वोटरों को वे नहीं बहका सकेंगे । जिस मुस्लिम वर्ग को कांग्रेस अपना ख़ास बताने में लगी रहती है, पिछले 60 वर्षो में अब तक इसी वर्ग को शिक्षित और रोजगारयुक्त करने में कांग्रेस ने कभी भी रूचि नहीं ली तो कब तक वे भी कांग्रेस के झूठे वादों को झेलेंगे ।

आज जब कुछ ऐसे घोटालो की बात चल रही है जिनके वजह से देश को हजारो कड़ोरो का नुकसान सहना पड़ा है तो ऐसे में विपक्ष की भूमिका पर भी जनता की नजर है । अब देखना होगा की विपक्ष इन मुद्दों पर देश की जनता को कैसे न्याय दिलाती है

Wednesday, December 15, 2010

Running Behind The time!!!


Well what is left to say about me but some of the facts which are the pillar of my life are love, respect, ambition and dedication. when i was school people used to ask me as usual question which is asked mostly to any children , that what i wanna become - a simple answer was from me was a politician or a business tycoon . i never tried to become engineer, doctor or any other professional but always tried to become a politician or a business tycoon as this two tags are favorite in my life as this two things can keep me alive after my death. So i can say the main motto of my life is to remain alive after my death as a identity as a name.

sometimes my surrounding's ask me for what i am running for whom i am running and why to run can't i live a normal life again i give them a very simple answer that i m not a normal person so how can i live a normal life. with all due respect sometime my thoughts hurts my loving caring wife and parents but really i am helpless as the time is running so fast and i feel i a lagging quite behind. i don't want to stand in the station looking towards the missing train but always want to travel in the train. its my passion to be in the race always and i also enjoy becoming spectator of any race.

i wake everyday with new plans in my mind and without any regression of changing my nature as i feel its perfect to sustain. as this race also be termed as "survival of the fittest" so i m in a mode of becoming fittest.

i had lost many things in this path of journey and yet ready to loose some more things as i know success needs sacrifices. so i can say i m just running behind the time with a hope to come ahead of the time very soon. when opportunities and success will start following me.

who is nira ?

The question that who is nira radia is coming in my mind since last few days and strikes me more every time when her wealth is disclosed by media. Really its so easy to become healthy wealthy and famous in our PIOUS INDIA. moreover i can bet on it that watching nira,barkha and veer sanghvi's property list many would have started to follow them. i was listening the tapes on youtube today in the morning ooooooo god how they are selling........its a mind blowing skill of selling and buying national interests even i heard RATAN TATA he also sounded quite energetic in his age to buy some more of country's stake for some less.

surely i can say nira radia is a offspring taken birth because of illegal relation of administration , industrialists and media. still she is trying lot to manage the show which is already over. really its pathetic to hear this sort of things from the mouth's of so called gullible journalists. its also is clear now that who are having the steering of the nation in there hands.

Instantly another question also comes in mind that who will be penalizing this acts as no one is worthy to do. so is the government going to call the maoists to punish this acts as they are still out of this game or a simple cbi investigation is enough to secure our hard earned tax money.

its completely a black out situation where no-one is able to answer this simple questions how nira invaded in 1995 and becaomes a multi millionaire in just few years.

Finally i heard u ...

the precious thing which i got and which i lost both is u... every single day i thought and serched for u only to have a glimpse of u....the memories are quite new and not yet forbidden for me,must be forbidden for u as per ur terms and conditions. orkut, facebook and google are my best 3 frens who helped me lot and were ready for me anytime. might be funny for others but it is true for me. still i love passionately every single retention connected with u...the day when i heard ur sound everything just was just rewinding around.....nyhow ur voice is still the same but u hd changed a lot ...why i dont kno but i fail must be because of my destiny or because of u ....

love is u but not within u....

Thursday, August 12, 2010

खेल संघो में खिलाड़ियो के बजाय पैसेवालों का कब्ज़ा

सोचिये ज़रा अगर किसी ऑटोचालक को विमान चलाने दे दिया जाये तो कैसा नज़ारा होगा ,बहरहाल शायद ऐसा कोई अनूठा प्रयोग अब तक किसी देश में नहीं हुआ होगा और शायद कभी होगा भी नहीं. पर ऐसे ही अनूठे प्रोयोग देश के खेल संघो में रोजाना देखने को मिलते है ये वोही खेल संघ है जो देश को ओलिम्पिक खेलो में पदक तो नहीं दिलवा पाते है पर जिनके बजट भारी भरकम होते है .अगर नज़र दौड़ाया जाए तो देश में पता नहीं कितने ऐसे खेल संघो के नाम मिल जायेंगे वास्तव में जिनसे सम्बंधित खेल कभी देखने को ही नहीं मिलते है . फिलहाल हमारे देश में अगर क्रिकेट को छोड़ दिया जाए तो शायद ही ऐसा कोई खेल बचता है जिसके कारण हम विश्व में अपनी पहचान बता पाए . हाकी को जिसे हम अपनी राष्ट्रीय खेल के रूप में देखते है वो भी काफी सालो से कोमा में चली गयी है . सालो साल आखिर इतने पैसे खर्च करने के बाद भी देश के खेल स्तर में सकारात्मक बदलाव क्यों नहीं दिख रही है ? इस सवाल का जवाब तो शायद ही किसी खेल संघ के पास होगा . आज खेल संघो में पदाधिकारी बनना प्रतिष्ठा का परिचायक बन गया है और कमाई का स्त्रोत भी . ऐसे भी इस देश में कहावत है की ' पैसा ही पैसे को खिचता है ' शायद इसी कहावत को सच साबित करने के लिए देश के सारे खेल संघो के पद पैसेवालों या रईसों के लिए आरक्षित कर दिया गया है . ऐसे रईसजादों को खेल संघो का कमान सम्हालने को दे दिया जाता है जिन्होंने अपने जीवनकाल में उक्त खेल को कभी खेला ही नहीं होगा तो ऐसे में उनसे ये उम्मीद रखना की वो खेल के बारीकियो को समझे और उसके विकास के लिए काम करे पूर्ण रूप से निरर्थक लगता है. भारत जिसका नंबर जनसँख्या के दृष्टी से चीन के बाद ही आता है वो ओलिम्पिक खेलो में पदक तालिका में निचे से एक दो नंबर का ही दावेदार बनता है और तब खिलाड़ियो पर सारा दोष डाल दिया जाता और उनके काबिलियत पर न जाने कितने सवाल उठाये जाने लगते है .पर जब माहौल ही खिलाड़ियो के खिलाफ हो तो वो करे भी क्या .

मैं छत्तीसगढ़ का निवासी हु जहा दो तीन दिन बाद "भारत के गुलामी का प्रतिक क्वींस बैटन " पहुँचने वाला है . पिछले कुछ दिनों से यहाँ इस बाबत तैयारिया चरम पर है और सभी खेल संघो में पदाधिकारियो के बीच घमासान चल रहा है .पर इस घमासान में खेल प्रेमी या खिलाड़ियो का टोटा है .इस धमचौकरी में प्रदेश के सारे रईस शामिल है जो शायद मैदान पर अपना कमाल दिखा पाएंगे या नहीं ये तो पता नहीं ,पर वातानुकूलित होटलों के कमरों में अपना कमाल दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे है . बड़े बड़े पोस्टरों और होर्डिंगो द्वारा खेल के प्रचार के बजाय अपना प्रचार किया जा रहा है . इन प्रचारों के पीछे भी एक सोची समझी साजिश है जिस अगर ध्यान से समझा जाये तो पता चलता है की ये लड़ाई कुछ हज़ार करोड़ रुपयों की है जो नेशनल गेम्स 2013 के लिए प्रदेश को मिलने वाला है. कमोवेश पुरे देश में ही ऐसे हालत है , सारे के सारे खेल संघो में ऐसे लोगो की भरमार है जिन्हें खेल से ज्यादा उसके अप्रत्यक्ष फायदों से मतलब है. पर इन लोगो के वजह से खिलाड़ियो को इन खेल संघो में जगह ही नहीं मिल पाती है और जिस वजह से नए तकनीक और जानकारी का आभाव बना रहता है खेलो में .
कलमाड़ी जी की प्रतिष्ठान राष्ट्र मंडल खेलो की तो बात करना ही ऐसे में बेमानी लगती क्योंकि वो तो राजनीती और भ्रस्टाचार का अखाड़ा बन गया है .भारत में किसी ख़िलाड़ी की कोई कमी है, जो इन रईसों को जनता के गाढ़ी कमाई का पैसा सौप दिया जाता है उड़ाने और अपने जेब भरने के लिए . आखिर कब भारत की शान कहलाने वाले खिलाड़ियो को उनका हक मिलेगा और हम अपने देश को सारे अंतराष्ट्रीय खेल आयोजनों में पदक तालिकाओ की सूचि में अच्छे स्थान पर देख पाएंगे और कब पैसे के जगह काबिलियत को खेल संघो में वरीयता प्रदान किया जायेगा इए कुछ ऐसे सवाल है जिनका उत्तर तो शायद आज किसी के पास भी नहीं होगा . इन खेल संघो के पैसो पे कोई विदेश में आराम फरमाता है तो कोई अपने निवास में व्याम के आधुनिक उपकरण लगवाता है . ये वोही देश है जहा ओलिम्पिक में कुश्ती में स्वर्ण पदक जितने वाले को अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में भीख मांग कर गुजरा करना पड़ता है पर कुश्ती संघ ने न जाने अब तक कितने ही लोगो को विदेश सैर करवा दिया होगा . क्या किसी के आमिर या गरीब होने से ही उसके काबिलियत को आँका जा सकता है अगर नहीं तो फिर खेल संघो से इन नाकारा रईसों को क्यों निकाल नहीं दिया जाता है ? और उनके जगह देश के खिलाडियो को मौका दिया जाता है .अगर किसी भी खेल की गवर्निंग कमिटी को देखा जाए तो तथाकथित समाजसेवी और खेल प्रेमी का ऐसा झुण्ड नज़र आता है जो गिद्ध की तरह लगे हुए रहते है उस खेल संघ के पैसो को हज़म करने में . मुझे लगता है समाज को एकजुट होकर इस एकाधिकार का विरोध करना चाहिए और ऐसे सारे खेल आयोजनों का बहिष्कार कर देना चाहिए जिनसे अमीरों के जेब फल फुल रहे है . आई पि एल ने सारे देश के सामने अपनी हकीक़त खुद ही बया की और इससे भी पर्दा उठा की कैसे कुछ कद्दावर लोगो के बीच पैसो का बन्दरबाट हुआ . मैंने इस लेख के द्वारा सच्चाई बयान करने एक कोशिश की है ,अगर कुछ और लोग भी ऐसे कोशिश करे तो शायद कुछ बदलाव आ सकता है क्योंकि अभी भी सकारात्मक सोच के लोगो की कमी नहीं है इस देश में.

Monday, August 2, 2010

लोकतंत्र का गद्दार कौन ?



आज एक चैनल पर आ रहे कार्यक्रम 'लोकतंत्र के गद्दार ' को देखने के बाद मेरे मन में एक सवाल बार बार आया की आखिर लोकतंत्र का गद्दार है कौन ? कुछ दिनों पूर्व रायपुर में हुए एक सेमिनार में मैंने स्वामी अगनिवेश के साथ कुछ और बुद्धिजिवियो को सुना था तब भी मेरे मन में ऐसे ही सवाल आये थे ,उनके श्रीमुख से जो भी कुछ निकला मुझे कुछ हज़म नहीं हुआ और शायद ही किसी समझदार युवा को हज़म हुआ होगा . आज हर व्यक्ति आये दिन हमारे लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा करने की कोशीश करते नज़र आता है और मुझे तो लगता है की ये बुध्धिजीवी कहलाने और बनने के लिए जैसा पहला कदम हो . और तो और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाली मीडिया भी इसमें कोई कसर नहीं छोड़ता , आज मीडिया किस जगह पहुँच गयी है ये तो शायद ही किसी से छुपी है , घर घर की कहानी को लोगो के सामने पेश करने में मीडिया को कभी शर्म नहीं आती उल्टा अपने पीठ को खुद ही थपथपाने में लगी रहती है .पर मुझे एक बात समझ नहीं आती की आखिर क्या सारी बुराइया सिर्फ लोकतंत्र और राजनीती में ही है बाकी सबका दामन पाक साफ़ है .आज इस देश के भ्रष्ट सिस्टम में शायद ही ऐसी कोई व्यवस्था बची है जो भ्रष्ट नहीं हुआ है ,पर मीडिया को और बुद्धिजीविओ को ये सब नज़र नहीं आता है. उस सेमिनार में एक बात आई जिसमे कहा गया की आज के लोकतंत्र का मतलब है की कुछ चुने हुए प्रतिनिधिओ द्वारा चलायी जा रही सरकार जो सिर्फ उन प्रतिनिधिओ के लिए ही काम करती हो , एक आंकड़ा भी पेश किया गया जिसमे उल्लेख किया गया की देश के सर्वोच्च संसथान लोकसभा और राज्यसभा में परिवारवाद का और पैसो का ही बोलबाला है . पर ये बात किसी ने नहीं कही की देश के आज़ाद होने 60 साल के बाद भी देश का मतदान प्रतिशत 60% से आगे नहीं बढ़ पाया और किसी ने कोशिश भी नहीं की इसे बढ़ाने की . ये भी हो सकता है की मंच पर लोकतंत्र के बारे में जो आग उगलते है वो भी अपने आप को मतदान करने से वंचित रखते है . मतदान वाले दिन शायद ही कोई मीडिया कर्मी अपनी ऊँगली में साही दिखा पाता है और दूसरो को प्रेरित कर पाता है मतदान के लिए .
अगर ध्यान से देखा जाए तो समझ आता है की एक सोची समझी साज़िश के तहत एक वृहद कोशिश चलाई जा रही है इस देश में राजनीती और लोकतंत्र को बदनाम करने की ताकि आम आदमी इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझे. आज देश की परिस्थिति ये है की नब्बे प्रतिशत लोग राजनीति को गन्दा कहने से भी परहेज़ नहीं करते और उच्च वर्ग और कॉर्पोरेट जगत तो मतदान को भी समय की बर्बादी समझते है ,ऐसे में लोकतंत्र का मतलब ही क्या रह जाता है. आज बच्चा जब स्कूल जाता है तो उसके माँ बाप की एक ही ख्वाहिश होती है की वो बड़ा होके डॉक्टर ,इंजिनियर या कोई प्रोफेसनल कोर्स करके विदेश में सेटेल हो जाये और डालर में कमाई करे , क्या कोई माँ बाप सोचता है की उसके संतान देश के सिस्टम के लिए कुछ करे शायद इसके जवाब में हा कभी सुनने को नहीं मिलेगा. क्या कोई बच्चा एम.बी.ऐ की पढाई करते समय देश में मंत्री या जनप्रतिनिधि बनकर काम करने की सोचता होगा शायद इस प्रश्न के उत्तर में भी न ही मिलेगा . तो अब लोकतंत्र का क्या दोष है जब काबिल आदमी इस ओर कदम बढ़ाएंगे ही नहीं तो सिस्टम में खराबी आएगी ही . सारे लोग एक बात जरूर कहते नज़र आते है की राजनीती में तो कोई भी आ सकता है इसके लिए कोई डिग्री या डिप्लोमा की जरूरत नहीं पड़ती .पर क्या डिग्री पाने के बाद कोई राजनीती में आने की चाहत रखता है ये सवाल कोई नहीं पूछता . क्या गन्दगी सिर्फ राजनीती में ही है ये सवाल मैं उन सभी बुद्धिजीविओ से पूछना चाहता हु क्या कॉर्पोरेट जगत ,मीडिया जगत ,शिक्षा जगत या ऐसी सारी जगह पाक साफ़ है इनपे कोई ऊँगली क्यों नहीं उठाता. राखी सावंत के ठुमको को बेचने वाली मीडिया भी राजनीती के पीछे ऐसे हाथ धोके पड़ी रहती है जैसे मानो राखी सावंत से ठुमके लगवाने के लिए भी लोकतंत्र और राजनीती ने ही मीडिया को प्रेरित किया हो . टी.आर.पि के अंधी दौर में भागते भागते आज मीडिया जो परोस रही है शायद इसकी परिकल्पना भी किसी ने नहीं किया होगा . कुछ सालो पहले ऐसी कई प्रतिबंधित किताबे छपती थी जो सभ्य समाज के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती थी आज वैसी कहानिया सारे चैनलों के लिए प्राइम टाइम खबरे है .क्यों इन बुध्धिजिवियो को ये सब नहीं दीखता .
शायद इन लोगो ने कसम खा ली है की देश के लोकतंत्र और राजनीती को इतना बदनाम कर देंगे की 110 करोड़ की जनसँख्या वाले इस देश में राजनीती में आने के लिए लोगो का टोटा लग जाए और परिवारवाद का वृक्ष पूरी तरह से इस देश को अपने आगोश में समां ले . मुझे तो इन लोगो के समझदारी पे बड़ा तरस आता है और उनके देशप्रेम के ढोंग से नफरत होती है . जिस लोकतंत्र के बल पे वे बुध्धिजीवी कहलाते है उसी को दिलखोल कर गाली देते है . तो ऐसे में इन बुध्धिजिवियो को देशद्रोही या गद्दार क्यों न कहा जाये . आज वो वक़्त आ गया है जब युवावर्ग को कमान अपने हाथ ले लेना चाहिए और इन देशद्रोहियो को बेनकाब कर देना चाहिए और इनके विचारो को सिरे से खारिज कर इनसे बुद्धिजिवि कहलाने का हक छीन लेना चाहिए . मीडिया की भी क्या कहे वो इस युवा वर्ग को बिग बॉस संस्कृति में इस तरह फ़साना चाहती है की उससे ऊपर उठके युवा कुछ देख ही न पाए . एक बड़े पत्रकार ने उसी मंच से एक बड़ी अनोखी बात कही की तकनीक के साथ संस्कृति भी बदलती है . पर क्या किसी देश की तकनिकी विकास ने उसे मजबूर किया की वो अपने संस्कृति को बदल दे इसका उत्तर उनके पास शायद ही होगा . क्या किसी तकनीक ने मजबूर किया की टीवी पर इमोसनल अत्याचार देखे या स्वयंवर का तमाशा देखे . इस मीडिया को तो किसी जवान के बहते खून में भी सिर्फ टी.आर.पि दिखती है, तभी तो उसके बहते खून के आगे एक्सक्लूसिव का टैग लगा देते है और उसमे उन्हें कोई शर्म भी नहीं आती . मीडिया कैसे कौडियो के भाव बिकने लगी है इसके तो न जाने कितने उदाहरण है, पर मैं जिस प्रदेश में रहता हु वहा भी मीडिया किसी धंधे से कम नहीं है. इस प्रदेश के चार बड़े मीडिया हॉउस क्रमश केमिकल , स्टील , पावर , और कोयले के धंधे में व्यस्त है और अपने पावर का इस्तमाल सिर्फ अपने लिए करते है . कमोवेश पुरे देश का ही हाल ऐसा है सारे बड़े चैनल किसी न किसी उद्योग को बढ़ावा देने में लगी रहती है . तो फिर क्यों लोकतंत्र को निशाना बनाना अगर इसमें बुराई है तो अच्छाई भी है . अब देशवासियो पे ये छोड़ दिया जाना चाहिए की वो तय करे की आखिर लोकतंत्र का असली गद्दार है कौन ?

Wednesday, July 7, 2010

आकृति .....


सूरज की तरह आग है यहाँ ,
चाँद सी सीतलता भी यहाँ ,
रामायण भी यही गीता भी यहाँ ,
यही कुरान ए पाक और है इसा ,
क्या लेकर आया हु क्या ले जा पाऊंगा ,
तेरा मेरा की बीच लटक के क्या पाउँगा ,
कुछ पलो सी की सांस उधारी में पाई है ,
कुछ अधूरे से सपनो की माला पिरोई है ,
तुम और मैं एक होकर क्यों नहीं बनते हम ,
जब लहू हमारी एक है तो क्या है गम ,
आओ सपनो की सी धरती बनाये एक ,
जहा न हो भूख और न हो आतंक ,
जहा न हो रुदासी और न हो शमसान की वीरानी ,
आओ सपने को करे साकार ,
विश्व को दे नया आकार

मैं युवा हु

वीरो की भांति सीना चौड़ा हो मेरा ,
सपूतो की भांति कंधे मजबूत हो मेरा ,
कब तक चुप रहके बहूँगा मैं भीड़ के साथ ,
भ्रष्ट और कायरता पूर्ण हो चूका है देश मानों जैसे हो रात ,
खड़ा होके आवाजा उठाना है शेर की तरह ,
अकेले चलना पड़े तो चलूँगा सूरज की तरह ,
झुकूँगा नहीं मिटूंगा नहीं न ही डरूंगा मैं ,
अपनों का साथ मिले तो ठीक नहीं तो चलूँगा अकेले मैं ,
कफ़न सर पे बाँध ली है निशाना आँखों से चुन ली है ,
अब तो बस दिखाना है की बाजुओ में कितना दम है ,
युवा नहीं तो कुछ नहीं यही साबित करना है ,

एक भीनी सी याद...

कल जब मिलते थे होती थी दिल में खनक,

प्यार की पहली लम्हों में थी अजीब सी कसक,

क्यों खीचा आता था तुम्हारी बाहों में,

क्यों आँखे भींच के खोता था तुम्हारे ख्यालो में,

आज भी तुम्हारी यादे दिल में हलचल मचा जाती है,

कुछ अनछुए देखे से सपने रुदासी छोड़ जाती है,

कभी इतनी दूरी की सोची तो न थी,

उन दिनों कभी धुप और कुछ छाया सि थी,

पर आज तनहा होके भी तुम साथ हो,

दिन को तो भूल गया बस अब रात का साथ हो,

मचलता तो आज भी मेरा मन है,

क्यों न जाने उसे एक सपना दोबारा देखने को है,

आओ तुम दोबारा अपने मदमस्त चाल में,

कर जाओ घायल मुझे डाले जाओ दोबारा जाल में .