Wednesday, July 7, 2010

आकृति .....


सूरज की तरह आग है यहाँ ,
चाँद सी सीतलता भी यहाँ ,
रामायण भी यही गीता भी यहाँ ,
यही कुरान ए पाक और है इसा ,
क्या लेकर आया हु क्या ले जा पाऊंगा ,
तेरा मेरा की बीच लटक के क्या पाउँगा ,
कुछ पलो सी की सांस उधारी में पाई है ,
कुछ अधूरे से सपनो की माला पिरोई है ,
तुम और मैं एक होकर क्यों नहीं बनते हम ,
जब लहू हमारी एक है तो क्या है गम ,
आओ सपनो की सी धरती बनाये एक ,
जहा न हो भूख और न हो आतंक ,
जहा न हो रुदासी और न हो शमसान की वीरानी ,
आओ सपने को करे साकार ,
विश्व को दे नया आकार

1 comment:

  1. सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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