Tuesday, August 2, 2011
चुभन......
बस कुछ दूरी तक तेरा साथ चाहा था ,
मंजूर उस खुदा को मेरी इतनी सी दुआ नहीं है ,
कल जो तेरे प्यार का आसरा था वो आज नहीं है ,
बैठ के दो आंसू बहा लू वो तनहाई भी नहीं है .
Sunday, June 26, 2011
कुछ भींगे पल...
Sunday, June 5, 2011
एहसास ...
कभी न देखा हो ऐसी मूरत हो तुम ,
कच्चे मिटटी से बनी निर्मल काया हो तुम,
कुछ मीठे एहसासों से बनी रिश्तो की गठरी हो तुम ,
ये आज मुझे क्या हो गया मैं क्यों हो गया गुम,
दूरियों का मज़ा भी नजदीकिया सी लगती है,
कुछ प्यारे अनछुए पलो की सी एहसास हो तुम,
Friday, May 27, 2011
आखिर अग्निवेश ही मध्यस्थ क्यों ?

आज भारत में एक नयी पौध तैयार हो रही है जिन्हें मध्यस्थ के नाम से जाना जाता है और इस वक़्त देश का सबसे बड़ा मध्यस्थ स्वामी अग्निवेश है. मध्यस्थ को अंग्रेजी में मीडीएटर और ठेठ हिंदी भाषा में दलाल कहा जाता है . इन मीडीएटरो की या मध्यस्थों की जरुरत ज्यादातर व्यापार वाणिज्य में पड़ती है और आम जिंदगी में इनके इस्तेमाल को ठीक नहीं समझा जाता है. इसका कारण इए है की अगर आम जिंदगी में बेहतर सम्बन्ध स्थापित करना हो तो सीधा संवाद ही उचित है. पर कुछ दिनों से जबभी देश में कोई सकारात्मक या नकारात्मक पहल उभर कर आयी है तब छत्तीसगढ़ में पैदा हुए एक मध्यस्थ बिन बुलाये ही अपनी सेवाए देने पहुँच जा रहे है. ये मध्यस्थ और कोई नहीं स्वामी अग्निवेश है जिनके खुद के अस्तित्व पे बहुत से सवाल लंबित है. हद तो तब हो गयी जब ये अन्ना हजारे के पाक साफ़ आन्दोलन में भी अपनी सेवाए देने पहुँच गए और अपने कु प्रभाव से इस आन्दोलन को प्रभावित करने से नहीं चूंके ,क्या उन्हें किसी ने वह बुलाया था इसका उनके पास तब भी जवाब नहीं था और शायद आज भी नहीं होगा.
छत्तीसगढ़ से तो उनको ख़ास लगाव है इसीलिए शायद उनके मातृभूमि होने का क़र्ज़ वो नक्सलियो को बढ़ावा देकर पूरा करना चाहते हो. जब भी कोई नक्सली मरता है या जेल पहुँचता है, तो स्वामीजी अपने मध्यस्थ शागिर्दों के साथ पुरे ताम झाम से दिल्ली से रायपुर पहुँच जाते है ,महंगी से महंगी हवाई यात्रा कर. ऐसे तो ये स्वामी है और भारतीय वेदों की माने तो स्वामी और साधू वो होते है जिनकी खुद की कोई इनकम नहीं होती है तो आश्चर्य इस बात से उत्पन्न होती है की फिर इनके मेहेंगे सफ़र के प्रायोजक कौन होते है और आखिर इतना संसाधन इए जुटाते कैसे है. इनसे मुखातिब होने का मौका मुझे एक बार मिला था तब मैंने यही सवाल उनसे पुछा था ,तो उन्होंने टालते हुए उत्तर दिया था की हम तो साधू है और हमे जो भी मदद के लिए बुलाता है हम तत्परता से उनकी मदद करने पहुँच जाते है. छत्तीसगढ़ की जनता इस मध्यस्थ से ये जानना चाहती है की आखिर वो जब जवानों की शहादत होती है तबे इनको क्या होता है तब ये छत्तीसगढ़ क्यों नहीं पहुँचते है शायद उन्हें तब प्रायोजक नहीं मिलते होंगे. एक तरफ तो ये अपने आप शान्ति दूत कहते है और दूसरी तरफ वो ऐसे संगठनो को समर्थन देते है जो हिंसा पर आमादा है. कुछ दिनों पूर्व छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में देश के 9 सपूतो ने मौत को गले लगाया और हिंसा की चरम तो ये थी की उनके हाथ पाँव तक काट दिए गए थे दहशत पैदा करने के लिए , तब ये मध्यस्थ कहा था इनके तरफ से कोई बयान नहीं आया इसपे आश्चर्य करना बेमानी ही होगी और उस समय शायद वो किसी बिल में तब छुपे हुए थे.
कुछ समय पूर्व जब दंतेवाडा में अग्निवेश ने शान्ति मार्च निकला था बड़ी बड़ी गाड़ियो से, तब उनका वहा घोर विरोध हुआ था , उन्होंने इसके प्रतिक्रिया स्वरुप ये कहा था की ये लोग छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा सिखाये पढाये गए लोग है और उन्हें शान्ति बहाल करने से रोक रहे है. उनके इस प्रतिक्रिया को दिल्ली में कई बुद्धिजीविओ ने तत्काल सराहा और मीडिया ने भी इस खबर को खूब उछाला सरकार. विडम्बना ये है की बुध्धिजिवियो का वर्ग केवल दिल्ली से ही बयानबाजी करने में व्यस्त रहते है तो उन्हें यहाँ की हकीक़त का अंदाजा नहीं हो पाता है. एक अंग्रेजी चैनल ने तो तब ये तक कह दिया था की कुछ गुंडों ने स्वामीजी के शान्ति मार्च को बाधित किया. पर शायद उस चैनल को ये नहीं मालूम रहा होगा की बस्तर के सबसे बड़े गुंडे तो ये नक्सली है जिनके हिमायती को छुने की कोई दूसरा गुंडा हिम्मत कर ही नहीं सकता. वो तो वहा की जनता थी जिसे नक्सलियो का असली चेहरा मालूम है और उसी वजह से स्वामी अग्निवेश को दंतेवाडा में घुसने नहीं दिया गया था.
आज जब अहमदाबाद के भरी महफ़िल में स्वामी का पगरी एक असली साधू ने उछाला तब ये बुद्धिजीवी वर्ग ने कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी और वो तमाम अंग्रेजी चैनल कहा गए. इस घटना के बाद से स्वामीजी के श्रीमुख से भी कुछ नहीं निकल रहा है प्रतिक्रिया स्वरुप ,क्योंकि इस घटना के लिए वो किसको जिम्मेदार कहे ये शायद समझ नहीं आ रहा होगा उन्हें. क्योंकि ये घटना तो छत्तीसगढ़ के माटी से कई सौ किलोमीटर की दूरी में घटित हुई है. गौर से अगर परिस्थिति को देखा जाए तो ये नक्सली भी कोई गैर नहीं है बस हमारे कुछ भटके हुए भाई ही है जो इन बुध्धिजिवियो के चंगुल में फंस के अपने और दूसरो के जीवन के दुश्मन बन बैठे है. आज भी अगर इन मध्यस्थों को बीच से हटा दिया जाए तो नक्सल समस्या का निवारण बहुत आसान हो जायेगा. इसीलिए वक़्त आ गया है की हम अग्निवेश जैसे मध्यस्थों को सिरे से नकार दे . इन्हें सिर्फ ऐसे ही सबक सिखाया जा सकता है ,इनका विरोध करने से इनके तेवर और बढ़ते है और अंतरास्ट्रीय समाज भी इन्हें मदद करने को तैयार हो जाती है.
Tuesday, May 3, 2011
I wont pay !!!
The scenario in India is more sarcastic here even we don't know how many types of taxes we are paying, unfortunately nobody is concerned regarding this and also no government machinery is serious to bring about a change. our hard earned money is getting squeezed in form of n number of taxes and in return what we are getting is more irritating, its the thousand crore scams acknowledgment through media and other sources. Due to this malfunctioning taxation policy industrialists are indirectly encouraged to hide their income and government is sharpening its knife on common taxpayers neck in a silent way. why their is no policy for 100% seizure of black money can anyone tell me? why there is a same taxation policy in this whole country whereas the lifestyle and expenditure pattern is very much different? in metros like delhi ,mumbai kolkata etc the routine life expenses are on very much higher side so is it a justice to give them same tax free slab as of the citizens of B or C class cities... why the tax rebate is not based on the inflation rate? who told this governments to save their money by developing infrastructure through PPP mode and to collect toll's forcefully ? we are jokers and puppets so only we are not standing against this malpractice .
Monday, May 2, 2011
OBAMA killed OSAMA who will be benefitted ..........
LIBIYA is the newest victim of america and i feel every other oil producing countries will become victims of america soon or later. Only america will search out for some justified way to do this unjust brutal job. I am very sad today off course not because of OSAMA'S killing but because my countrymen seems to be standing with America because of a unseen threat. Believe only we need a day to stand up its very easy for us to live without america or american products but it will be very worse for them to live without our market and manpower....HATE AMERICA TO LOVE INDIA.....
Wednesday, April 27, 2011
ये कैसा सुराज ये कैसा दिखावा !
सुनने और पढ़ने में शायद ये काफी अजीब लगे पर ये सच है कि छत्तीसगढ़ सरकार 5 सालो में 50 दिन जनता के बीच बिताती है और उसे सुराज के नाम से प्रख्यात करने में कोई चूक नहीं करती है. आखिर ये कैसा सुराज है जहा नौकर शाह खाना पूर्ति करने के नाम से मात्र 10 दिन अपना पसीना बहाकर वाह-वाही लूटने को आमादा दिखती है. छत्तीसगढ़ ऐसे भी नौकर शाहों का ही प्रदेश बनकर रह गया है , कहने को तो यहाँ भाजपा कि सरकार है पर हकीक़त में इस प्रदेश को नौकर शाह ही चला रहे है और सरकार के सारे मंत्री इनके सामने अपनी चलाने में नाकाम साबित हो रहे है. डॉ रमन सिंह ने अपनी पहली पारी में जितनी लोकप्रियता हासिल कि थी शायद दूसरी पारी में वो नहीं कर पा रहे है और इसका प्रमुख कारण उनका कार्यकर्ताओ और जनता से सीधा संवाद न होना . उनके आस-पास कार्यकर्ताओ का तो टोटा सा लग गया है या जो है उन्हें भी नौकर शाहों ने मुह बंद रखने कि हिदायत दे रखी है.
भारतीय शिक्षा प्रणाली को गौर से अगर देखा जाए तो ये नौकरशाह कागज़ के शेर ही नज़र आते है जो अपनी आधी जिंदगी किताबी ज्ञान बटोरने में लगाते है और जिनका समाज से लगाव बहुत कम ही रहता है. जब ये तथाकथित कागज़ के शेर अपने कुर्सी को सम्हाल लेते है तो ये अपने आधीन काम करने वालो पर 100 फीसदी निर्भर हो जाते है और सिर्फ हस्ताक्षर करने तक अपने आप को सीमित कर लेते है. यही कारण है कि ये नौकरशाह 10 दिन में सुराज लाने कि कल्पना करते है और अपने मुखिया के आँख में धूल झोंककर आरामदायक कुर्सिओ पर जमे रहने कि कोशिश करते है. आज पूरे प्रदेश में ग्राम सुराज कि जमकर खिचाई हो रही है ,कही अधिकारिओ को बंद कर दिया जा रहा है, तो कही सुराज का बहिष्कार किया जा रहा है इससे तो ये ही प्रतीत हो रहा है कि अब प्रदेश वासिओ को 10 दिन के सुराज के नाम पर अधिकारी वर्ग मूर्ख नहीं बना सकते है.
डॉ रमन सिंह को भी अब समझना चाहिए कि इस प्रदेश कि जनता ने भाजपा पर भरोसा किया है ना कि इन नौकरशाहों पर और उन्हें बागडौर अपने हाथ में ले लेना चाहिए. ये वो ही देश है जहा मायावती जैसी महिला मुख्यमंत्री ने एक दिन में ही 144 आईएएस व आईपीएस जैसे अफसरों पर गाज गिराके समझा दिया था कि इस देश में लोकतंत्र है और नौकरशाह लोकतंत्र के अधीन होते है न कि उससे ऊपर. ऐसे भी ये नौकरशाह सुख के पंछी होते है जब जिसकी सरकार तब उनके होते है, शायद डॉ साहब को ये बाद में समझ आएगा जब वे सरकार में नहीं रहेंगे. कोई भी राजनैतिक पार्टी को नीति निर्धारण करते समय अपने कार्यकर्ताओ को ज्यादा तवज्जो देनी चाहिए क्योंकि ये वो ही कार्यकर्ता होते है जो अगले चुनाव में जनता के बीच जाने वाली होती है या जिनका सीधा संवाद जनता से रहती है. पर इस प्रदेश में सारे निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ अधिकारिओ के पास है, चाहे वो जैसे भी उनको तोड़े-मरोड़े कार्यकर्ता सिर्फ आहे ही भर सकता है.
रमन सिंह ने जब दोबारा मुख्यमंत्री कि कुर्सी सम्हाली थी तो परिदृश्यो को देखकर ऐसा लगता था कि शायद ये पश्चिम बंगाल में वामदलों द्वारा बनाये गए 35 साल के रिकॉर्ड को तोड़ देंगे, पर अब ढाई साल बाद ऐसे सोचना भी मूर्खता सी ही लग रही है. रोज सुबह मैं जब अखबार लेकर बैठता हूँ,तो मेरे चेहरे पर सहसा ही हंसी फूट जाती है सुराज के जनसंपर्क अभियान को देखकर, हर अखबार के मुख्य पृष्ट पर डॉ. साहब के तस्वीर वाला ग्राम सुराज से सम्बंधित बड़ा सा विज्ञापन लगे रहता है और ठीक उसके ऊपर समाचार रहती है कि फला जगह ग्राम सुराज दल को बंधक बनाया गया . तो ये सरकारी पैसो को स्वाह कर विज्ञापन क्यों छपवाया जा रहा है ये समझ से परे है जब अभियान ही नहीं चल पा रहा है तो इतना खर्च क्यों ? मजे कि बात तो ये भी है इस ग्राम सुराज अभियान में कुछ दिनों पूर्व एक विधायक को भी ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था, ये साफ़ साफ़ सन्देश है रमन सरकार के लिए कि नीतिओ में बदलाव जरूरी है अधिकारिओ पर कसाव जरूरी है, सरकार कार्यकर्ताओ के साथ मिलकर चलाया जाता है नाकि निरंकुश अधिकारिओ के भरोसे. चुनावो को भले ही ढाई साल बचे है पर कार्यकर्ताओ कि पूछ परख रहेगी तभी भाजपा को विजयश्री प्राप्त हो पायेगी और ये अधिकारी वर्ग तो आंचार सहिंता के बाद से ही पराये हो जायेंगे.
10 दिन के सुराज से कोई बदलाव नहीं आना ग्राम स्तर पर ठोस कार्यक्रमो कि जरूरत है जो 24 घंटे और 365 दिन के लिए हो, ये छोटे मोटे गानों से कुछ नहीं होने वाला है साहब यहाँ तो पूरी पिक्चर कि जरूरत है, भाजपा को भी जरुरत है कि सरकार पे अपना लगाम लगा कर रखे नहीं तो 2014 का सपना एक बार फिर हाँथ से निकलता ही दिखेगा और लकीर के फकीर बनकर 2019 तक विरोध ही करते रहना पड़ेगा. प्रदेश कि ऐसी कई परियोजनाए है जो वाकई में सुराज ला रही है इनके क्रियान्वयन पे जोर देना होगा न कि अखबारों के विज्ञापन से किसी का भला हो पायेगा. ये अखबारों को भी शाबाशी देनी चाहिए जो अपने दोयम चरित्र को अपने मुख्य पृष्ठों पर छापने से भी नहीं कतराते है. एक तरफ ग्राम सुराज का लाखो का विज्ञापन और दूसरे तरफ उसकी निंदा..............।